नई दिल्ली। राष्ट्रमंडल खेल, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद एक और घपला
सामने आया है। यह घोटाला प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अधीन हैदराबाद
स्थित नेशनल टेक्निकल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (एनटीआरओ) का है। घोटाले से सरकार
को करीब 1000 करोड़ रू. की चपत लगी है।
यह संस्था सीधे प्रधानमंत्री के अधीन है और देश के की अति संवेदनशील खुफिया यूनिट है। इसका ऑडिट कराने का अधिकार किसी को नहीं है। मगर, प्रधानमंत्री की मंजूरी के बाद देश में पहली बार किसी इंटेलीजेंस एजेंसी का ऑडिट कराया गया।
दरअसल, 17 जनवरी 2011 में एनटीआरओ में असिस्टेंट कंट्रोल (एस्टेब्लिसमेंट) पद पर कार्यरत अधिकारी सुरेश शर्मा ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) के समक्ष शिकायत अर्जी दाखिल कर संस्थान में अनियमितताओं की जांच कराने की मांग की थी। एनएसए ने मामला एनटीआरओ अध्यक्ष पी.वी. कुमार को सौंपा। कुमार ने संस्थान के पूर्व चेयरमैन केवीएसएस प्रसाद राव के कार्यकाल में हुई अनियमितताओं पर तैयार रिपोर्ट एनएसए को भेजी गई, मगर एनएसए द्वारा इस आधार पर इसे नकार दिया गया कि मामला हाई प्रोफाइल है और कैग की आंतरिक जांच इसमें चल रही है।
पीएमओ पर फिर उठी उंगली
कैग ने अपनी जांच में पाया कि इस संस्थान को लेकर पीएमओ का रवैया बहुत ही ढीला रहा, जिसके चलते एनटीआरओ में साल 2009 से अक्टूबर 2010 तक अधिकारियों ने मनमर्जी से काम किया। उन्होंने देश की सुरक्षा के लिए हुई खुफिया सामानों की खरीद में भी लापरवाही बरती। गौरतलब है कि राष्ट्रमंडल खेल घोटाला और 2जी आवंटन मामले में भी पीएमओ पर उंगली उठ चुकी है।
करोड़ों का घपला
कैग ने रिपोर्ट में पाया कि इजरायली कंपनी से खरीदे गए मानवरहित यानों की खरीद में लगभग 450 करोड़ रूपए का घोटाला हुआ है। इसके अलावा, 2007 में हुई सैटेलाइट लिंक, अत्याधुनिक कम्युनिकेशन सिस्टम और अन्य खुफिया सामानों की खरीद में भी करीब 150 करोड़ का नुकसान हुआ है। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट (सीसीएस) एनटीआरओ की रिपोर्ट रखता है, मगर इस संस्थान ने 2007 में हुई खरीदी की जानकारी भी सीसीएस को नहीं दी।
बताया जा रहा है कि एनटीआरओ ने जो यूएवी खरीदे थे वे काम के ही नहीं निकले, जबकि 150 कर्मचारियों की नियुक्ति भी बिना किसी कमेटी की मंजूरी के कर दी गई। एनटीआरओ को सरकार से अब तक 8000 करोड़ रूपए मिले हैं लेकिन इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
घबरा रही है सरकार
कैग ने यह रिपोर्ट फरवरी में ही सरकार को सौंप दी थी, मगर वर्तमान माहौल को देखते हुए सरकार इसे संसद के समक्ष रखना नहीं चाहती। इस घोटाले में संस्थान के पूर्व चीफ राव और वर्तमान सलाहकार एम.एस. विजयराघवन पर उंगली उठ रही है।
---Support Team
www.support-ramdev-baba-foranticorruption.blogspot.com
यह संस्था सीधे प्रधानमंत्री के अधीन है और देश के की अति संवेदनशील खुफिया यूनिट है। इसका ऑडिट कराने का अधिकार किसी को नहीं है। मगर, प्रधानमंत्री की मंजूरी के बाद देश में पहली बार किसी इंटेलीजेंस एजेंसी का ऑडिट कराया गया।
दरअसल, 17 जनवरी 2011 में एनटीआरओ में असिस्टेंट कंट्रोल (एस्टेब्लिसमेंट) पद पर कार्यरत अधिकारी सुरेश शर्मा ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) के समक्ष शिकायत अर्जी दाखिल कर संस्थान में अनियमितताओं की जांच कराने की मांग की थी। एनएसए ने मामला एनटीआरओ अध्यक्ष पी.वी. कुमार को सौंपा। कुमार ने संस्थान के पूर्व चेयरमैन केवीएसएस प्रसाद राव के कार्यकाल में हुई अनियमितताओं पर तैयार रिपोर्ट एनएसए को भेजी गई, मगर एनएसए द्वारा इस आधार पर इसे नकार दिया गया कि मामला हाई प्रोफाइल है और कैग की आंतरिक जांच इसमें चल रही है।
पीएमओ पर फिर उठी उंगली
कैग ने अपनी जांच में पाया कि इस संस्थान को लेकर पीएमओ का रवैया बहुत ही ढीला रहा, जिसके चलते एनटीआरओ में साल 2009 से अक्टूबर 2010 तक अधिकारियों ने मनमर्जी से काम किया। उन्होंने देश की सुरक्षा के लिए हुई खुफिया सामानों की खरीद में भी लापरवाही बरती। गौरतलब है कि राष्ट्रमंडल खेल घोटाला और 2जी आवंटन मामले में भी पीएमओ पर उंगली उठ चुकी है।
करोड़ों का घपला
कैग ने रिपोर्ट में पाया कि इजरायली कंपनी से खरीदे गए मानवरहित यानों की खरीद में लगभग 450 करोड़ रूपए का घोटाला हुआ है। इसके अलावा, 2007 में हुई सैटेलाइट लिंक, अत्याधुनिक कम्युनिकेशन सिस्टम और अन्य खुफिया सामानों की खरीद में भी करीब 150 करोड़ का नुकसान हुआ है। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट (सीसीएस) एनटीआरओ की रिपोर्ट रखता है, मगर इस संस्थान ने 2007 में हुई खरीदी की जानकारी भी सीसीएस को नहीं दी।
बताया जा रहा है कि एनटीआरओ ने जो यूएवी खरीदे थे वे काम के ही नहीं निकले, जबकि 150 कर्मचारियों की नियुक्ति भी बिना किसी कमेटी की मंजूरी के कर दी गई। एनटीआरओ को सरकार से अब तक 8000 करोड़ रूपए मिले हैं लेकिन इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
घबरा रही है सरकार
कैग ने यह रिपोर्ट फरवरी में ही सरकार को सौंप दी थी, मगर वर्तमान माहौल को देखते हुए सरकार इसे संसद के समक्ष रखना नहीं चाहती। इस घोटाले में संस्थान के पूर्व चीफ राव और वर्तमान सलाहकार एम.एस. विजयराघवन पर उंगली उठ रही है।
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